सच्चे प्यार की अनोखी कहानी — निहारिका व अर्णव की दिल छू लेने वाली दास्तान

कभी-कभी ज़िंदगी की सबसे साधारण घटनाएँ ही हमें उस जगह पहुँचा देती हैं जहाँ से हमारी कहानी की शुरुआत होती है — और वही छोटी-मोटी घटनाएँ बाद में एक अद्भुत प्रेम कहानी का पूरा इतिहास बन जाती हैं।

BEST VILLEAGE

एक आसान , मगर असरदार हुक

कहानी की शुरुआत किसी ऊँचे महल या किसी बेमिसाल रोमांस से नहीं होती। यह कहानी शुरू होती है एक पुरानी किताब की दुकान के सामने खड़ी धूप में धीरे-धीरे बहती धूल से, और एक मोबाइल फ़ोन पर बजती हुई एक पुरानी गाने की धुन से — जो दोनों ही पात्रों के जीवन में गहराई से जुड़ी हुई थी। यही छोटी-छोटी चीजें बाद में उन दोनों की ज़िंदगी में ऐसे समय लेकर आईं कि दुनिया के सारे पेज बदल गए।

यह कहानी है निहारिका और अर्णव की — दो ऐसे लोग जो दुनिया में अलग-अलग रास्तों पर चल रहे थे, पर एक अनजानी वजह से उनका मिलन हुआ और फिर वे एक-दूसरे के लिए वो बने जो किसी कहानी में आसानी से न हो पाते। यह कहानी सिर्फ प्यार की नहीं है; यह समझौते, उम्मीदों, त्याग और छोटे-छोटे रोज़मर्रा के जतन की भी कहानी है।

किरदारों का परिचय

निहारिका — 28 साल, एक स्थानीय कॉलेज में आर्ट टीचर। निहारिका का बचपन कला और कहानियों में बीता। उसे पुराने कागज़ों, पुरानी तस्वीरों और हाथ से लिखे पत्रों से लगाव है। वह बातों में सरल है, पर अपनी भावनाओं को शब्दों में बांधने में कतराती है।

अर्णव — 31 साल, पेशे से रेडियो-रिकवरी और पुरानी चीज़ों के कलेक्टर। उसे बचपन से मशीनों और पुराने रिकॉर्ड्स में मज़ा आया। अर्णव का स्वभाव शांत है, पर वह अपने काम के प्रति बहुत समर्पित है। उसकी ज़िंदगी में एक तरह की सादगी है — कम बोलना, ज़्यादा करना।

राहुल (निहारिका का पिता) — एक बैंक ऑफ़िसर जो हमेशा उम्मीद करता है कि बेटी की ज़िंदगी स्थिर हो। वह सुरक्षा और परंपरा को महत्व देता है।

सीमा (अर्णव की मां) — एक छोटी सी दुकान चलाती हैं, जिसमें दूकान के साथ उनका घर भी है। सीमा का प्यार सीधे-सीधे होता है; वह चाहती है कि बेटा खुश रहे।

पृष्ठभूमि और सेटिंग

कहानी का शहर न तो बहुत बड़ा महानगर है और न ही बिल्कुल छोटा गाँव; यह एक ऐसा कस्बा है जहाँ पुराने समय और नए ज़माने का मिश्रण दिखाई देता है — संकरी गलियाँ, पुरानी हवेलियाँ, चाय की छोटी दुकानें और चौपालें जहाँ लोग शाम को इकठ्ठा होते हैं। मौसम अक्सर बदलता रहता है — कभी हल्की धूप तो कभी अचानक बारिश। यही बदलते मौसम उन दोनों की मुलाक़ातों का सानुकूल मंच बनते हैं।

निहारिका हर रोज़ कॉलेज जाती और खाली समय में वह स्थानीय किताबों की दुकान पर समय बिताती। वह पुरानी किताबों से नए अर्थ निकालना जानती थी। अर्णव की दुकान कुछ दूरी पर थी — ‘‘पुराना नया घर’’ नाम की छोटी-सी दुकान जहाँ वह रेडियो, रिकॉर्ड, पुराने पोस्टकार्ड और जंक से बने खज़ाने रखता था।

पहली मुलाक़ात — एक गुम हुआ खत और एक समझदार मुस्कान

एक गुम हुआ खत और एक समझदार मुस्कान

एक दिन की बात है —
निहारिका किताबों की दुकान में बैठी थी। किताबों की शेल्फ़ से छिटकती धूल, किताबों की खुशबू और बाहर से आती हुई गली की हल्की-सी हँसी — सब कुछ वैसे ही शांत था जैसा अक्सर होता था। तभी दुकान पर एक पुराना पत्र मिला — कोई फाड़ा हुआ, किनारों पर मिट्टी जमी हुई, पर किसी के दिल की गहराई से लिखा हुआ लगता था।

निहारिका ने उस खत को खिसकाया और पढ़ना शुरू किया। खत में कोई पुरानी मोहब्बत थी — पंक्तियाँ ऐसी जो आज भी दिल में धड़कन जगा देती थीं। खत आधा-आधूरा था; पर एक नाम साफ़ दिखाई दे रहा था — "अर्णव।"

निहारिका हैरान हुई। वह समझी कि कोई कारण होगा कि यह खत यहाँ छूट गया है। शायद कोई इसे ढूँढ रहा होगा। उसने दुकान वाले से पूछा पर वह भी चकित था। तभी अर्णव की आवाज़ दुकान के बाहर की ओर से आई — कोई अपने सहारे चल रहा था, हाथ में एक पुराना टेप रिकार्डर था जो ज़रा-सा टूटकर बिखरा पड़ा था।

अर्णव ने देखा कि निहारिका उसके नाम वाला खत पढ़ रही है। उसकी आँखों में एक अजीब-सी चमक आई — न खुशी, न घबराहट। निहारिका ने खत उसे लौटाते हुए कहा, "ये आपका खत है?" उसने सुनीं-पढ़ी आवाज़ में हँसी दे दी — "शायद।" इसी एक शब्द में दोनों की बातें बढ़ीं।

पहली मुलाक़ात कुछ ही मिनटों की थी पर वह मिनट ऐसे थे जैसे किसी फिल्म में टकटकी लगाकर देखें। बातचीत छोटी-सी रही — गाना किसका बज रहा था, रिकार्डर कहाँ से मिला, किताबों के पन्नों की स्याही कैसी खनकती है — पर दोनों ही महसूस कर रहे थे कि यह मिलन साधारण नहीं।

प्रेम की बुनियाद — साझा रुचियाँ और छोटे-छोटे वादे

साझा रुचियाँ और छोटे-छोटे वादे

उनके बीच बातचीत बढ़ी तो दोनों ने पाया कि उनकी रुचियाँ डरावनी तरह से मेल खाती हैं — पुराने गानों की थाती, हाथ से लिखे खत, चित्रकला और एक तरह की संवेदनशीलता जो अक्सर पुरानी चीज़ों से जुड़ी होती है।

निहारिका ने अर्णव के लिए एक पोस्टर बनाया — कॉलेज में आने वाली आर्ट फेयरी के लिए। अर्णव ने अपनी दुकान से कुछ पुराने रिकॉर्ड्स दिए ताकि आयोजन में पुराने गानों का माहौल बन सके। इसी तरह के छोटे-छोटे आदान-प्रदानों में उनका रिश्ता बुनता गया। एक वादा हुआ — छोटी-छोटी चीज़ों का ध्यान रखना, एक-दूसरे के लिए समय निकालना।

वे अक्सर शाम को दुकान के पास वाली चाय की दुकान पर मिलते। चाय की प्याली और दो रस्तों के बीच वो बातें जो किसी को बताना मुश्किल था — अपने डर, अपनी छोटी-छोटी जीत, बचपन की यादें — सब खुलकर बोल देते थे।

निहारिका ने सुनाया कि कैसे उसकी मां उसे बचपन में कहानियाँ पढ़ाया करती थीं और कैसे वह खुद भी उन कहानियों को नई रंगत देना चाहती है। अर्णव ने अपना बचपन बताया — कैसे उसके पिता पुराना रेडियो ख़रीदकर उसको ठीक करने के लिए देते थे और कैसे वह घंटों बैठकर उन गुनगुनाहटों में खो जाता।

पहला संकट — समाज और योजनाएँ

समाज और योजनाएँ

सब कुछ तब तक अच्छा रहा जब तक कि ज़िंदगी ने अपना पहला सवाल नहीं पूछा। निहारिका के पिता, राहुल, को अर्णव के बारे में सुनकर खुशी नहीं थी। वे चाहते थे कि उनकी बेटी की शादी किसी ऐसे इंसान से हो जो आर्थिक रूप से मजबूत और सामजिक रूप से सम्मानित हो। वह चाहते थे कि निहारिका किसी बैंक या सरकारी नौकरी में बनी रहे — जैसी सुरक्षा उन्होंने अपनी ज़िंदगी में चुनी थी।

अर्णव की आर्थिक स्थिति स्थिर नहीं थी। उसकी दुकान अच्छी थी, पर अस्थिरता अक्सर वहां रहती थी। राहुल ने अर्णव को देखा और उन्होंने अपनी चिंता जताई — "बेटी को स्थिर जीवन चाहिए, निहारिका की पढ़ाई-लिखाई बड़ी है।"

निहारिका ने पिता से कहा: "पापा, अर्णव सच्चा है, वह मेहनती है।" पर राहुल का डर था कि सच्चाई खाने के बाद उसे चोट लगेगी। उन्होंने निहारिका से कहा कि वह सोच-समझकर निर्णय ले।

इस बीच अर्णव ने सोचा कि अपने करियर को और मजबूत करना होगा। उसने अपने पुराने कनेक्शनों से बात की और एक अहम नौकरी का प्रस्ताव मिला — शहर से बाहर एक बड़े पुरानी चीज़ों के संग्रहालय में रखने का काम। वह अवसर आता था अगर वह कुछ समय के लिए शहर छोड़ कर जाया।

निहारिका और अर्णव ने मिलकर सोचा — क्या यह अवसर स्वीकार कर लिया जाए? यह कैरियर के लिए अच्छा था पर मतलब यह था कि दोनों अलग होंगे, दूरी बढ़ेगी। निहारिका ने कहा कि वह इंतज़ार करेगी — पर राहुल का कहना था कि इंतज़ार किसी भी लड़की के लिए अच्छा नहीं होता।

दूरी और चुनौतियाँ — इंतज़ार की कसौटी

इंतज़ार की कसौटी

अर्णव ने नौकरी स्वीकार कर ली। यह निर्णय प्यार के लिए बड़ा था और ज़िम्मेदारी के लिए भी। उसने सोचा कि वह वक़्त के साथ स्थिति को संभाल लेगा और वापस आएगा जब उसकी स्थिति स्थिर हो जाएगी। निहारिका ने पति के पिता के विरोध के बावजूद उसे समर्थन दिया। पर वास्तविक दुनिया में वक्त और दूरी ने कई नाज़ुक चीजें उभारीं।

पहला महीना ठीक-ठाक गुज़रा। वे फोन पर बात करते, चिट्ठियाँ भेजते — वो पुराने तरीके जिनसे प्यार को संभाला जाता था। पर समय के साथ फोन कम आने लगे, निहारिका को काम में व्यस्त होना पड़ा और राहुल का दबाव भी बढ़ा।

अर्णव को संग्रहालय में बहुत काम मिला — दिन-रात काम, पुराने रिकॉर्ड्स का वर्गीकरण, और कभी-कभी पुराने संदेशों की खोज। उसने निहारिका को बताया कि वह मेहनत कर रहा है ताकि लौट कर आए तो दोनों का जीवन बेहतर हो। पर निहारिका के मन में कभी-कभी आशंका उभरती — क्या इंतज़ार सही निर्णय था? क्या कोई अन्य विकल्प अच्छा नहीं होता?

एक अजीब मोड़ — गलतफहमी और चिठ्ठियों का खोना

किसी शहर में चिट्ठियाँ खो जाती हैं, फोन की लाइनों में गड़बड़ी होती है, और इंसान अपने निर्णयों को लेकर भ्रमित हो जाते हैं। एक दिन निहारिका को अर्णव की तरफ़ से एक चिट्ठी मिली जिसका पता कुछ अजीब तरह से बदला हुआ था। चिट्ठी का अर्थ ही बदल गया — ऐसा लगा जैसे अर्णव ने लिखा ही नहीं। निहारिका को चोट पहुँची, और उसने राहुल को बताया। राहुल ने यही समझा कि यह संकेत है कि अर्णव अब उतना गंभीर नहीं रहा।

वहीं अर्णव के तरफ़ से भी दिक्कतें आ गईं। संग्रहालय में एक पुरानी डायरी मिली जिसमें अर्णव के पिता का एक लेख था, पर किसी ने वह डायरी भेजने की प्रक्रिया में गलती कर दी — डायरी देर से पहुँची और अर्णव का एक संदेश निहारिका तक नहीं पहुँच पाया।

गलतफहमी ने दोनों के बीच दरार बढ़ा दी। निहारिका ने अर्णव को कई बार फोन किया पर कई बार कॉल अधूरी रहीं। अर्णव ने भी लिखा पर उसके पत्र खो गए।

यह समय ऐसा था कि दोनों के इरादे सच्चे थे पर हालात ने उनकी बातों की जड़ों को काट दिया। इसीलिए प्यार को सिर्फ सच्चा होना ही काफी नहीं होता; उसे संभालने के लिए समझदारी, संचार और कभी-कभी त्याग भी होना ज़रूरी है।

समर्पण और त्याग — अर्णव की कठिन मेहनत

कई महीनों बाद जब चीज़ें धीरे-धीरे बैठने लगीं, अर्णव ने तय किया कि वह सब कुछ सुधारने की कोशिश करेगा। उसने संग्रहालय में एक विशेष प्रोजेक्ट उठाया — पुराने पोस्टकार्ड और खतों की एक प्रदर्शनी जिसमें लोगों की अनकही कहानियों को सामने लाना था। अर्णव ने सोचा कि अगर वह इस प्रदर्शनी में निहारिका की मदद लेगा तो दोनों के बीच का विश्वास फिर से बन सकता है।

निहारिका ने शुरुआती असमंजस के बाद यह प्रस्ताव स्वीकार किया। दोनों ने मिलकर काम किया — निहारिका ने पोस्टर और क्योरिएटर का काम संभाला और अर्णव ने पुरानी चीज़ों की देखभाल। प्रदर्शनी ने जब खुलकर लोगों को अपनी कहानियाँ सुनाईं तो बहुतों की आँखें नम हो गईं। लोगों ने बताया कि कैसे एक खत ने किसी रिश्ते को बचाया था, या कैसे एक पुरानी सीडी किसी बिछड़े रिश्ते को जोड़ने का कारण बनी।

प्रदर्शनी के दौरान, निहारिका और अर्णव ने महसूस किया कि उनका प्यार वही पुराना, वही सच्चा है। मगर अब दूरी और बेवजह की असमंजस का प्रभाव कम था। उन्होंने निर्णय किया कि चाहे कुछ भी हो, वे ईमानदारी से बात करेंगे और किसी भी समस्या को मिलकर सुलझाएंगे।

एक बड़ा फैसला — रिश्ते का सार्वजनिक रूप

निहारिका और अर्णव ने सोचा कि अब जो भी हो, वे अपने रिश्ते को छुपाकर नहीं रखेंगे। निहारिका ने अपने पिता को सीधे जाकर बताया कि उसे किसे पसंद है और क्यों। राहुल को पहले यह स्वीकार करना मुश्किल लगा पर उन्होंने देखा कि निहारिका का मन कितना पक्का है। राहुल ने अपने डर और समाज के रूप में जो सीमाएँ रखी थीं,अंततः अपनी बेटी की खुशी के सामने शांत कर दीं।

अर्णव ने भी अपने परिवार से बात की, और सीमा ने उसे यही कहा — "जब खुशी मिलती है तो उसे मत छोड़ो।" यह कह कर वह मुस्कुरा दी।

दोनों ने शादी का निर्णय लिया — पर यह शादी किसी चमक-दमक की नहीं थी। यह शादी उन लोगों की थी जो जानते थे कि प्यार के साथ जिम्मेदारियाँ भी आती हैं। उन्होंने छोटे से समारोह का आयोजन किया, जिसमें दोनों के मित्र, परिवार और कुछ खास लोग शामिल हुए। शादी के बाद उनकी ज़िंदगी आसान नहीं हुई — पर उन चुनौतियों का सामना करना अब आसान लगने लगा क्योंकि अब वे साथ थे।

जीवन की छोटी-छोटी खुशियाँ — परिवार और काम

परिवार और काम

शादी के बाद भी उनका जीवन सफर ही था — वे दोनों अपने-अपने काम में लगे रहे। निहारिका ने आर्ट क्लास शुरू की और अर्णव ने अपनी दुकान का विस्तार किया। उन्होंने मिलकर छोटे-छोटे निर्णय लिए — जैसे घर कहाँ होगा, बचत कैसे करेंगे, बच्चों की पढ़ाई पर किस तरह ध्यान देंगे।

यहाँ सबसे खूबसूरत बात यह थी कि दोनों ने अपनी रुचियों को कभी त्यागा नहीं। निहारिका ने घर में एक छोटी-सी लाइब्रेरी बनाई और अर्णव ने पुराने रिकॉर्ड्स का एक कोना। शाम को कॉफी पर वे अक्सर बैठते और दिन भर की छोटी-बड़ी घटनाओं पर हँसते।

उनकी जिंदगी ने दिखाया कि सच्चा प्यार केवल भावनाओं का मिलन नहीं होता; यह रोज़मर्रा की ज़िम्मेदारियों को निभाने का नाम भी है।

अनोखा मोड़ — एक पुरानी डायरी और परिवार का रहस्य

कुछ सालों बाद, अर्णव को संग्रहालय में फिर से एक पुरानी डायरी मिली। यह डायरी काफी पुरानी थी और उसमें अर्णव के पिता की कुछ अनकही बातें लिखी थीं — बताया गया था कि पिता ने भी एक बार बहुत सच्चा प्यार किया था पर परिस्थितियों के कारण उन्हें छोड़ना पड़ा।

डायरी में ये भी लिखा था कि उसी प्रेम कहानी के एक हिस्से के तौर पर कुछ खत गलती से कहीं गिर गए थे और वे कभी वापस नहीं आए। अर्णव ने महसूस किया कि यह वे खंड हैं जो कभी कभी लोगों की ज़िंदगी बदल देते हैं।

पर इस डायरी का सबसे बड़ा रहस्य यह था कि उस प्रेम कहानी का दूसरा किरदार असल में निहारिका से जुड़ा था — यह बात अर्णव के लिए चौंकाने वाली थी। डायरी में संकेत थे कि उस समय की लड़की का परिवार शहर के कहीं पास ही रहता था। अर्णव ने शोध किया और पाया कि वह लड़की असल में निहारिका की उम्र की थी और उसने उसी शहर में रहने का जिक्र किया था।

यह मिलन किसी तरह अजीब सा था — जैसे समय ने चकरा कर फिर वही कहानी सामने ला दी। इस खोज से निहारिका और अर्णव ने देखा कि किस तरह उनकी ज़िंदगियाँ बीते वक़्त के आइनों में रिफ्लेक्ट करती थीं।

कठिनाइयाँ और स्वास्थ्य की परिक्षा

कठिनाइयाँ और स्वास्थ्य की परिक्षा

समय के साथ सब कुछ आसान नहीं रहा। कुछ स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे भी आए — निहारिका की एक छोटी सी बीमारी हुई जिससे उसे आराम की ज़रूरत पड़ी। अर्णव ने पूरी तरह से उसका ख्याल रखा। सीमा और राहुल दोनों हाथ बटाने आए और इस समय में प्रेम ने एक नई कसौटी दी।

निहारिका के ऑपरेशन के दिन, अर्णव रात भर अस्पताल के बाहर बैठा रहा। उसे तब लगा कि उसकी ज़िंदगी की सबसे कठिन परीक्षा यही थी — अपनी पत्नी को गिरते हुए देखने की पीड़ा सहना और उसके लिए उम्मीद बनाना। निहारिका ने धीरे-धीरे ठीक होना शुरू किया और अर्णव ने देखा कि उनकी साझा ज़िम्मेदारियों ने उन्हें और करीब कर दिया।

बड़ा मोड़ — एक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार और मान्यता

निहारिका ने अपनी आर्ट की एक सीरीज़ बनाई जो पुराने खतों और यादों पर आधारित थी। वह इसे एक ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर भेजती है और यह सीरीज़ उम्मीद से कहीं अधिक प्रसिद्ध होती है। कई गैलरी और संग्रहालय उसमें रुचि लेते हैं। निहारिका और अर्णव दोनों को यह अहसास होता है कि उन्होंने जो जीवन चुना था — कला, पुरानी चीज़ों का सम्मान और सादगी — वह अब दुनिया के सामने भी आता है।

निहारिका को एक अंतरराष्ट्रीय आर्ट अवॉर्ड के लिए नामांकित किया जाता है। इस सफलता ने उनका विश्वास बढ़ाया — न केवल अपने कला में, बल्कि एक दूसरे में भी। अर्णव ने कहा, "तेरी जीत हमारी जीत है," और निहारिका ने मुस्कुरा कर कहा, "तुम्हारे बिना यह नामुमकिन था।"

समय का सुख और छोटी-छोटी परीश्रम की मिठास

समय के साथ बच्चों ने भी घर में अपनी जगह बनाई। घर में छोटे-छोटे हँसी के ठहाके, स्कूल की कहानियाँ और कला की छोटी प्रदर्शनी — ये सब उनके जीवन का हिस्सा बन गए।

निकटता का अर्थ अब सिर्फ शारीरिक पास होना नहीं था बल्कि भावनात्मक साझेदारी बन गया था। उन्होंने सीखा कि रिश्ते में सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है — लगातार संवाद, छोटे-छोटे प्रेम के इशारे और एक-दूसरे की स्वतंत्रता का सम्मान।

कहानी का क्लाइमैक्स — एक आख़िरी परीक्षा

किसी भी प्रेम कहानी की तरह, उनकी भी एक आख़िरी परीक्षा आई। शहर में अचानक कुछ बड़े बदलाव हुए — पुराने संग्रहालयों को नया रूप देना और पुरानी दुकानों को बंद किया जाना। अर्णव की दुकान पर भी असर पड़ा। उस समय उनकी वित्तीय स्थिति थोड़ी कठिन हुई।

पर इस बार, दोनों ने मिलकर निर्णय लिया। निहारिका ने कुछ पेंटिंग्स बेच कर मदद की, और अर्णव ने अपनी दुकान का एक छोटा सा हिस्सा ऑनलाइन बेचने का निर्णय लिया। वे फिर से एक नई राह पर चल पड़े — सिख कर कि प्यार केवल भावनाएँ नहीं, बल्कि परिस्थिति के अनुसार समझदारी से किए गए निर्णय भी है।

समापन और संदेश — असली प्यार क्या है?

"सच्चे प्यार की अनोखी कहानी" का मतलब यह नहीं है कि हर कहानी परफेक्ट होगी। पर इसका अर्थ यह है कि जब दो लोग ईमानदारी, समझ और समर्पण से साथ चलें, तो उनकी कहानी अनोखी बन जाती है — साधारण नहीं।

निहारिका और अर्णव की कहानी बताती है कि:

  • प्यार में समर्पण ज़रूरी है, पर उसकी नाज़ुकता को समझना और उसे संभालना और भी ज़रूरी है।
  • गलतफहमी आ सकती हैं, पर संवाद और कार्य उन्हें सुलझा सकता है।
  • समय और परिस्थिति बदलते हैं— जो टिकता है वह सिर्फ़ वही नहीं जो भावना में गहरा है, बल्कि वही जो रोज़मर्रा के फैसलों में भी साथ निभाता है।

कहानी खत्म नहीं होती; वह एक नए अध्याय की ओर बढ़ती है — छोटे-छोटे निर्णय, नए अनुभव और उन यादों के साथ जो हमेशा दिल पर लिखी रहती हैं। निहारिका और अर्णव की ज़िंदगी में भी कई और दिन आएँगे, पर उनकी कहानी बस एक बात पर कायम रहेगी — कि सच्चा प्यार कभी खत्म नहीं होता, वह बदलता है, पनपता है और जीवन का रूप बदल देता है।

एपिलॉग — एक पत्र जो कभी खोया नहीं

कई साल बाद, निहारिका ने उसी किताबों की दुकान में एक पत्र पाया — वही पुराना सा खत जिसकी वजह से दोनों की मुलाक़ात हुई थी। यह खत कहीं से भी बदला नहीं था, पर अब वह दोनों के लिए सिर्फ़ श्रोतिक नहीं रहा; यह एक याद बन गया — कि कैसे एक छोटी चीज़ ने उनकी ज़िंदगी का मार्ग बदल दिया।

पत्र की आख़िरी पंक्ति में लिखा था: "कभी-कभी किसी की मुस्कान ही किसी और की दुनिया बदल देती है।"

निहारिका और अर्णव ने मिलकर हमारे लिए यही साबित किया — कि मुस्कान, समझ और थोड़ा-सा धैर्य बड़ी-सी कहानी लिख जाते हैं।


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